About Hinduism and India

कोई भी देश भारत की तरह हज़ार वर्षों तक गु़लाम नही रहा। अपने पूवर्जों की आस्थाओं, नैतिक मूल्यों, सामाजिक मर्यादाओं, और देश के ऐतिहासिक नायकों के प्रति श्रध्दा, देश भक्ति की भावना के आधार स्तम्भ हैं। यह कमजोर हो जायें तो देश भक्ति समाप्त हो जाती है। जब स्वाभिमान मर जाता है तो देश गु़लाम हो जाता है। भारत में ऐसा कई बार हुआ है और आज भी हो रहा है। हम ने अपने इतिहास से सीखने की कोशिश ही नहीं की।

आज देश भक्ति सभी आधार स्तम्भों पर कुठाराघात हो रहा है और हम मनोरंजन में अपना समय नष्ट कर रहे हैं। देश के कई भागों में हिन्दूओं को ईसाई या मुसलिम बनाया जा रहा है।

इसाई मिशनरी और जिहादी मुसलिम संगठन इस देश को दीमक की तरह खाये जा रहे हैं। कोई हिन्दूओं को ईसाई या मुसलमान बनाये तो वह उदार है और प्रगतिशील कहलाता है, लेकिन अगर कोई हिन्दू को हिन्दू बने रहने को कहे तो वह उग्रवादी और कट्टर पंथी होने का अप्राधी कहा जाता है। राजनैताओं ने भारत को एक धर्महीन देश समझ रखा है कि यहाँ कोई भी आ कर राजनैतिक स्वार्थ के लिये अपने मतदाता इकठे कर ले ?

धर्म-निर्पेक्ष्ता का तात्पर्य  सरकारी क्षेत्र में समानता लाना है ना कि विदेशी धर्मों का बहुमत बना कर इस देश को फिर से खण्डित करने का कुचक्र रचना। अगर असीमित धर्म-निर्पेक्ष्ता पर लगाम ना लगाइ गई तो एक बार फिर हिन्दू अपने ही देश में अल्प-संख्यक और बेघर हो कर अन्य देशों में भटकते फिरें गे।

वेद, पुराण, उपनिष्द, रामायण, महाभारत, गीता, मनु समृति आदि ग्रंथ हिन्दु संस्कृति और नौतिक मूल्यों की आधारशिला हैं जिन की वजह से भारत को विज्ञान कला और संस्कृति के क्षैत्र में विश्व-गुरू माना जाता था। शिक्षण क्षैत्र का कोई भी विषय ऐसा नही जिस के बारे में जानकारी इन ग्रंथों मे ना हो। लेकिन आज हमारी नयी पीढी इन ग्रंथों की महानता से बेखबर हो चुकी हैं। कॅनवेन्ट प्रशिक्षित युवा-वर्ग इन ग्रथों का पढना तो दूर, बिना देखे ही इन ग्रथों को नकारना और उन का उपहास करना आधुनिकता की पहचान समझता है। धर्म-निर्पेक्ष्ता की चक्की में पिस कर विज्ञान कला और संस्कृति के यह अग्र-गणी ग्रंथ भारत में ही शिक्षण क्षैत्र से निकासित कर दिये गये है।

लार्ड मैकाले का भारतीय संस्कृति मिटाने का बचा-खुचा काम नेहरू से लेकर सोनिया गाँधी तक ने पूरा करने में लगे हैं। नयी पी़ढी अब ‘लिविंग-इन‘ तथा समलैंगिक सम्बन्धों जैसी विकृतियों की ओर भी आकर्षित होती दिख रही है। धर्म-निर्पेक्ष्ता के मुखोटे के पीछे केरल सरकार, और इसी तरह अन्य प्रदेश सरकारें भी, लगभग 300 करोड सालाना अल्प-संख्यक विद्यालयों को अनुदान देती है जिस से भारत को खण्डित करने के लिये ईसाईयों और जिहादी मुसलमानों की सैना तैयार होती है।

व्यक्तियों से समाज बनता है। कोई भी व्यक्ति समाज के बिना अकेला नहीं रह सकता। हर व्यक्ति की निजी स्वतंत्रता की सीमा समाज के बन्धन तक ही रहनी चाहिये । समाज के नियम भूगोलिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक आस्थाओं और परम्पराओं पर आधारित होते हैं। इस लिये एक जगह के समाज के नियम दूसरी जगह के समाज पर थोपे नही जा सकते। यदि कुछ कट्टरपंथी विदेशियों को हिन्दू समाज के बन्धन पसन्द नही तो उन्हें हिन्दूओं से टकराने के बजाये उन देशों में जा कर बसना चाहिये जहाँ उन्हीं के अनुकूल सामाजिक परिस्थतियां उपलब्ध हैं।

विश्व के सभी देशों में स्थानीय र्मयादाओं का उल्लंघन करने पर कठोर दण्ड का प्राविधान है लेकिन भारत में धर्म-निर्पेक्ष्ता के साये में खुली छूट है। महानगरों की सड़कों पर यातायात रोक कर भीड़ नमाज़ पढ सकती है, दिन हो या रात किसी भी समय लाउडस्पीकर लगा कर आजा़न दे सकती है। किसी भी हिन्दू देवी-देवता का अशलील चित्र, फि़ल्में और उन के बारे में कुछ भी कहा या या लिखा जा सकता है। हिन्दू मन्दिर, पूजा स्थल, और त्यऔहारों के सार्वजनिक मण्डप स्दैव आतंकियों के बम धमाकों से भयग्रस्त रहते हैं। हमारा धर्म-निर्पेक्ष कानून तभी जागता है जब अल्प-संख्यक वर्ग को कोई आपत्ति होती है। इस प्रकार की इकतरफ़ा धर्म-निर्पेक्ष्ता से युवा हिन्दू अपने धर्म, विचारों, परमपराओं, त्यौहारों, और नैतिक बन्धनो से विमुखहो कर पलायनवादी होते जा रहे हैं।

मुसलिम मतदाताओं को लुभाने के लिये देश के इतिहास के साथ छेड़छाड़ करना तो कांग्रेस पार्टी की नीति ही रही है। अब प्राचीन ऐतिहासिक स्थलों को तोड़ने का षटयंत्र भी किया जा रहा है। मानव इतिहास की अनूठी धरोहर राम-सेतु निशाने पर अभी भी है परन्तु अमरनाथ यात्रियों की सुविधा के लिये दी गई ज़मीन कुछ अलगाव-वादी मुसलमानों के दबाव कारण कांग्रेसी सरकार ने वापिस लेने में देर नहीं लगाई थी।

हिन्दू सैंकडों वर्षों तक मुस्लिम शासकों को जज़िया टैक्स देते रहै और आज भी कांग्रेसी वोट बैंक बनाये रखने के लिये ‘हज-सब्सिडी‘ के तौर पर दे रहै हैं। हज-सब्सिडी को देश का सर्वोच्च न्यायालय भी अवैध घौषित कर चुका है तो भी केन्द्रीय सरकार ने इस पर रोक नहीं लगायी। उल्टे अब इसाई वोट बैंक बनाये रखने के लिये ‘बैथलहेम-सब्सिडी` देने की घोषणा भी कर दी है। संसार में कोई भी अन्य देश इस प्रकार की फिज़ूलखर्ची नही करता लेकिन भारत की धर्म-निर्पेक्ष सरकार के माप दण्ड वोट बैंक प्रेरित हैं।

भले ही कितने अन्य़ वर्ग के मतदाता भूखे पेट रहैं, उन के बच्चे ग़रीबी की वजह से अशिक्षित रहैं मगर अल्पसंख्यक तीर्थयात्रियों को विदेशी धर्म यात्रा के लिये धर्म-निर्पेक्षता प्रसाद स्वरूप सब्सिडी मिलती रहै गी। भले ही सरकारी अनाज खुले में सड जाय लेकिन शरद पवार जैसे नेता सडा हुआ अनाज भी गरीबों को नहीं देते और धर्म निर्पेक्ष बनने का स्वांग करते हैं। मनमोहन सिह चुप्पी साधे रहते हैं या अपनी मजबूरी बता कर मूहँ छिपा लेते हैं।

यह कहना सही नहीं  कि धर्म हर व्यक्ति का निजी मामला है, और उस के साथ सरकार या समाज को हस्तक्षेप नहीं करना चाहिये। जब धर्म के साथ जेहादी मानसिक्ता जुड़ जाती है जो व्यक्ति को दूसरे धर्म वाले का वध कर देने के लिये उकसाये तो वेसा धर्म व्यक्ति का निजी मामला नहीं रहता। ऐसे धर्म को मानने वाला अपने धर्म के दुष्प्रभाव से राजनीति, सामाजिक तथा आर्थिक व्यवस्थाओं को भी दूषित करता है। उस पर लगाम लगानी आवशयक है।

जहाँ सरकारी-धर्म-हीनता और हिन्दु-लाचारी भारत को फिर से ग़ुलामी का ओर धकेल रही हैं वहीं आशा की ऐक किरण अभी बाकी है। यह फैसला अब भी राष्ट्रवादियों को ही करना है कि वह अपने देश को स्वतन्त्र रखने के लिये हिन्दू विरोधी सरकार हटाना चाहते हैं या नहीं। यदि उन का फैसला हाँ में है तो अपने इतिहास को याद कर के वैचारिक मतभेद भुला कर एक राजनैतिक मंच पर इकठ्ठे हो कर काँग्रेस की हिन्दू विरोधी सरकार को बदल दें जिस की नीति धर्म-निर्पेक्ष्ता की नही – धर्म हीनता की है़ और देश को केवल परिवारवाद की ओर ले जा रही है।

चाँद शार्मा

Comments on: "काँग्रेसी सरकार धर्म-निर्पेक्ष नही – परिवारवादी धर्म हीन सरकार है" (1)

  1. डॉ विजय कुमार भार्गव सेवा निवृत वरिष्ठ वैज्ञानिक परमाणु ऊर्जा विभाग said:

    अपने जो कहा है वह सही कहा है. इसक कारण यह है कि आज भी देश गुलमी की जन्जीर में जकडा हुआ है. पहले अन्ग्रेजों का गुलाम था , आज अन्ग्रेज़ी का गुलाम है. यह तब तक चलता रहेगा जब तक अन्ग्रेज़ी उच्च से उच्च शिक्षा क मध्यम बनी रहेगी. अत: आज इस संबंध में चेतना जागृत करके अनुकूल सरकार बनाने की आवश्यकता है. इसके लिये स्वतन्त्रता अन्दोलन जैसे अन्दोलन की अवश्यकता है.

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